प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 03)
"ऐसा लगता है जैसे ईश्वर को खूबसूरती की नई परिभाषा बुननी थी इसलिए उन्होंने हिमालय को दीवार बनाकर खड़ा कर दिया और उससे सटे प्रदेशों को ऐसे सजा दिया जैसे अभी-अभी नया जोड़ा पहनकर दुल्हन निकली हो। यही प्रकृति के अनुपम छटा से शोभित प्रदेश उत्तराखंड है। अनेको दर्शनीय, रमणीय एवं सौंदर्य से परिपूर्ण प्राकृतिक दृश्यों से सम्पन्न यह प्रदेश अपने आप में अनोखा है। यहां के हर कोने कोने में साक्षात प्रकृति मधुर लय पर नृत्य करती हुई प्रतीत होती है। यह अशांत मन के व्यक्ति पर एक औषधि का प्रभाव छोड़ती है। यहां की आध्यात्मिक शक्ति से सम्पूर्ण संसार परिचित है, यहां कई ज्ञानियों, विद्वानों एवं वीरो ने जन्म लिया। यह धरती प्रेम की है, यहां भाषा प्रेम की है। यहां अवधारणा प्रेम की है इसलिये तो यहां के हर एक कण से प्रेम बहता हुआ नजर आता है। अनेकों झरने, खूबसूरत पहाड़िया, चोटियां, मंदिर आदि यहाँ के कोने-कोने में पाए जाते हैं। इनमें से ही एक है - मसूरी! मसूरी को यमुनोत्री और गंगोत्री का द्वार भी कहा जाता है, पहाड़ो की यह नगरी प्रकृति द्वारा साजी हुई है, यहां हर पग पर चित्ताकर्षक दृश्य मंत्रमुग्ध कर देते हैं। मसूरी झील, म्युनिसिपल गार्डन, तिब्बती मंदिर, ज्वालाजी मंदिर, भट्टा फॉल और कैम्पटी फॉल आदि इसके अनूठे नमूने हैं।
" कैम्पटी फॉल प्रकृति की एक असाधारण एवं अनुपम रचना, वैसे तो संसार में अनेको वाटर फॉल्स हैं मगर इसकी विशेषता यह है कि यह पांच अलग धाराओं में विभक्त होकर नीचे गिरता है। सुंदर घाटी में सौंदर्य से परिपूर्ण इस स्थान के बीचोंबीच यह फॉल्स अपने आप में अनोखा है, इतना खूबसूरत अहा…!" ड्राइवर अब भी उन्हें कैंपटी फॉल के बारे में ही बता रहा था।
"वो सब तो ठीक है अंकल पर इसका नाम "कनपटी" रखना जरूरी था क्या?" सबकुछ गौर से सुनने के बाद अनि ने जानने की इच्छा जताते हुए पूछा।
"इसके पीछे भी एक गजब की धारणा है, कहते हैं उस समय ब्रिटिश लोग अपनी चाय दावत अकसर यहीं पर किया करते थे, इसीलिए तो इस झरने का नाम कैंपटी मतलब कैंप और टी का सम्मिलित नाम कैम्पटी पड़ गया।" ड्राइवर ने हंसते हुए बताया।
"इन अंग्रेजो को साला कोई ढंग का नाम क्यों नही मिलता?" अनि ने अपने सिर पर हाथ मारा, पर हाथ सिर पर लगने से पहले टैक्सी की छत से टकरा गया। "ओरी मैय्या!" वह चीखा।
"अब शांत रहो, चुपचाप से बैठो हम अब पहुचने ही वाले हैं।" पियूषा ने उसे घूरते हुए कहा।
"ठीक है प्याऊ जी! जैसी आपकी इच्छा!" अनि ने रोनी सूरत बनाकर कहा। थोड़ी देर टैक्सी सरपट रास्तों पर चलती रही, अब उन्हें हवा पहले से और ठंडी महसूस होने लगी थी। पास से पानी के तेजी से नीचे गिरने की आवाजें आ रही थी।
"लीजिये हम पहुँच गए।" ड्राइवर ने टैक्सी रोकते हुए कहा।
"क..कहाँ?" अनि हकलाकर उठा।
"वहीं, जिसके बारे में तुम इतना ज्ञान ले रहे थे।" पियूषा ने सामान निकालते हुए कहा।
"ओह! अच्छा।" कहते हुए उसने पर्स निकालकर टैक्सी का किराया चुकाया।
"अगर आपको फिर कहीं जाना हो तो मुझे बुला लीजिएगा।" ड्राइवर ने अनि को एक कार्ड देते हुए कहा, थोड़े ही समय में वह काफी घुल मिल गया था। अनि, जो सफर के शुरुआत में उसे समझ नही आ रहा था अब समझने के बाद और अजीब लग रहा था।
"ये मेरा कार्ड है आपको जब जरूरत हो बेहिचक कॉल कर सकते हैं!" कहते हुए वह टैक्सी को वापस घुमाने लगा।
"वाओ! ये तो जितना सुना था उससे भी मार्वलस है! व्हाट ए ब्यूटीफुल प्लेस यार!" पियूषा बैग वहीं रखकर दोनों हाथ ऊपर करके चहकते हुए, फॉल की ओर दौड़ी।
"मुचमुच! बैटरी फुल यार!" अनि वही बैठकर पैर पसार लिया, और झरने की तरफ बिना नजर घुमाएं पहाड़ो को ऐसे देखने लगा जैसे उनमें कुछ ढूंढ रहा हो।
"यहां आओ!" पियूषा ने उसे अपनी ओर बुलाया।
"हाँ अभी आया।" कहता हुए वह धीमे कदमों से उसकी ओर बढ़ गया, पर दो कदम चलते हीई वह फिर ठिठक गया। उसका ध्यान अब भी पहाड़ियों की ओर ही था। वातावरण में अजीब सी ताजगी फैली हुई थी, चारों तरफ लोगो का जमावड़ा लगा हुआ था, कुछ लोग पानी में उतरकर नहा रहे थे तो कुछ हाथ से एक दूसरे पर पानी सींच रहे थे।
"कहा आ गया यार मैं!" अनि ने पेड़ो को घूरते हुए कहा। हरे-हरे पेड़, जो शायद सदाबहार प्रजाति के थे। उनसे लिपटी मोटी लताओं में खूबसूरत लाल पुष्प खिले हुए थे। कहते हैं प्रकृति जब श्रृंगार करती है तो संसार की सबसे सुंदर नवयौवना भी लजा जाती है। वातावरण से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी।
"ओये ध्यान कहा है तुम्हारा!" पियूषा ने उसकी तंद्रा भंग की।
"बस पेड़ गिन रहा हूँ।" अनि ने बिना कुछ सोचे जवाब दिया, उसकी नजरे अब भी उसी ओर गड़ी हुई थीं।
"थोड़ा उधर भी तो ध्यान दो बुद्धू!" वाटर फॉल को दिखाते हुए पियूषा ने कहा।
"अच्छा तो ये यहां है तभी तो मैं कहूँ कि मुझे दिख क्यों नही रहा।" अनि ने अपनी आँखें मलते हुए कहा।
"क्या?"
"यही तुम्हारा वॉटरफॉल! खुशबूरत है!" अनि ने तारीफ करते हुए कहा, पीयू उसके खींचते हुए फॉल के और करीब ले जा रही थी, वहां उपस्थित सभी लोगो की निगाहें इन दोनों पर टिकी हुई थी, मगर इन दोनों का जैसे किसी से कोई वास्ता ही न हो, बस दोनों अपनी धुन में मग्न चले जा रहे थे। झरने की ध्वनि मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी।
"जगब है यार!" अनि आंखे फाड़कर देखता हुआ बोला।
"तुम्हें हर जगह नौटंकी करने की जरूरत नही है मिस्टर नौटंकी!" पियूषा ने उसके सिर पर हल्के से चपत लगाई, एक पल को अनि घबरा गया फिर उसकी ओर देखकर खिसियाकर हँसने लगा।
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ट्रक अब भी धूं धूं कर जल रहा था, इंस्पेक्टर अरुण या किसी भी बच्चे का कोई अता-पता न था, आदित्य अपनी टीम के साथ उस स्थान पर पहुँचा। चारों ओर की तलाशी लेने पर भी उसे कुछ हासिल नही हुआ। उसने अरुण को कॉल किया, पर नेटवर्क गायब था। "शिट यार! जब जरूरत हो तभी ये कमबख्त नेटवर्क भी चला जाता है, अब कैसे ढूंढेंगे हम उन्हें!" आदित्य ने नेटवर्क को कोसते हुए कहा, वह आसपास की झाड़ियों में उन्हें ढूंढने लगा, अभी वह बस दो कदम ही चला था कि कुछ दूर आगे उसे गहरी खाई दिखाई दी, खाई के किनारे कोई वस्तु चमक रही थी। यह अरुण का फ़ोन था जिसकी स्क्रीन पर पड़ रहा सूर्य के प्रकाश परावर्तित होकर स्क्रीनको चमकदार प्रदर्शित कर रहा था। शायद उसका फोन यही गिर गया था। आदित्य ने झपटकर फ़ोन उठा लिया, पर उसके टच करते ही फोन डेड हो गया।
"शिट! शिट! शिट!" आदित्य ने अपना माथा पकड़ लिया।
"सर कहीं कोई निशान नही हैं, आसपास भी कोई दिखाई नही दे रहा है।" हेड कॉन्स्टेबल ने अरुण से कहा था।
"ओह नही! मैंने तो सुना था वो मौत को भी मात देने की क्षमता रखता है।" आदित्य ने जीप की बोनट के सहारे झुककर उसे पीटते हुए बोला। उसका मन कर रहा कि वह अपने सारे बाल नोच ले, जिस अरुण को यह जानता था उससे तो मौत भी घबराती थी।
"उन्होंने वाकई मौत को मात दे दी है सर! ट्रक में बस एक ही लाश मिली है।" कॉन्स्टेबल ने ट्रक के आसपास बारीकी से देखते हुए कहा। आदित्य भी ट्रक के पास पहुँचा।
"इसे लाश क्या कहना इसके तो चीथड़े उड़ गए हैं ! हो न हो यह ट्रक का ड्राइवर ही रहा होगा। इसका मतलब वो और बच्चे सुरक्षित होंगे। क्या सचमुच!"
"अब यहां कुछ नही बचा है सर! अगर उन्हें कुछ नही हुआ तो वे जल्दी ही वापिस ही आ ही जायेंगे।"
"चलो! अगर वे जिंदा हैं तो यही कहीं आसपास ही होंगे, हमें सर्च टीम लेकर आनी होगी, ताकि हम उसकी तलाश कर सकें।" आदित्य ने जीप में बैठते हुए कहा।
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अरुण की आँखे खुली, उसने अपने आप को अंधेरे में पाया। गौर से देखने पर सूर्य की किरण उस तक आती हुई दिखाई देने लगी, शाम होने को थी। उसके आसपास बच्चे घेर कर बैठे हुए थे। यह शायद कोई माटी का टीला था जो ऊपर से तो घास होने के कारण पता नही चलता पर नीचे गुफा की भांति था। अरुण को याद आया सभी बच्चों को अपनी गोद में लेकर कूदने से वह पीछे के बल गिरा, जिससे उसके पीठ और कमर पर भारी चोट आई थी और वह बेहोश हो गया। उससे अब भी बहुत अधिक दर्द हो रहा था मगर उसे सुकून था कि उसने उन बच्चों के मासूम जिस्म पर चोट का एक निशान तक भी न आने दिया।
"गूँ-गूँ!" एक बच्चे ने इशारा करके पूछा मानो वह कह रहा हो कि अब कैसे हो।
"तुम लोग बोल नही सकते।" अरुण हैरान हुआ।
"गूँ गूँ !" उसी बच्चे ने दुबारा इशारा करते हुए कुछ बताया।
"व्हाट? मतलब तुम बोल नही सकते, ये सुन नही सकता, ये देख नही सकता। और कपड़ो से ऐसा नही लगता कि कोई फिरौती के लिए किडनैप कर रहा था फिर क्या वजह हो सकती है?" अरुण ने अपना माथा पीट लिया। वह तेजी से वहां से बाहर निकला और बच्चों को अपने पीछे आने का इशारा किया। सभी बच्चे उसके पीछे पीछे चलने लगे, थोड़ी देर बाद वे पगडंडी पर आ चुके थे। अरुण ने अपना फोन निकालकर मदद बुलाने की सोंची मगर फ़ोन उसकी जेब में न था, वह थोड़ा सा परेशान हुए। उसका हाथ बाएं कान पर गया, उसका इयरपीस भी गिर चुका था। उसका चेहरा परेशान नजर आने लगा, वह गुस्से से तमतमा उठा, फिर बच्चों को देखकर थोड़ा सा शांत हुआ। उन मासूम बच्चों को देखकर उसके चेहरे पर मासूम सी मुस्कुराहट आ गयी। अरुण के मन में अब भी अनगिनत ख्याल उमड़ रहे थे, परन्तु इस समय वह बस बच्चों को सही सलामत घर पहुँचाना चाहता था। बच्चे उसके पीछे पीछे दृढ़ता से चलते जा रहे थे, उनकी यह जिद देखकर अरुण की मुस्कान और गहरी हो गयी।
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अगले दिन!
स्थान : पुलिस हेडक्वार्टर
"तुम लोगो ने मुझे ये बताना जरूरी नही समझा? न ही एफ.आई.आर. में नोट किया है!" अरुण गुस्से से तमतमाते हुए बोला, उसके सामने सभी पुलिस वाले लाइन में लगकर खड़े थे। मेघना और आदित्य का सिर झुका हुआ था। सब इस बात से खुश थे कि अरुण वापिस आ गया पर इस बात से हैरान भी थे कि आखिर किस बात पर इतना भड़क रहा था।
"प..पर सर!" आदित्य ने कुछ कहना चाहा।
"शट अप मिस्टर आदित्य! शट अप।" अरुण गुस्से में चीखा। "जिन बच्चों को मैंने ट्रक से निकाला उन में से सामान्य कोई भी नही था। कोई गूंगा, कोई बहरा, तो कोई अंधा था। आखिर इतनी बड़ी बात gumshuदगी की रिपोर्ट में लिखाई क्यों नही गयी।" अरुण ने लगभग चीखते हुए कहा, उसे इस अवस्था में देखकर सभी की बोलती बंद हो चुकी थी।
"मगर सर! उन बच्चों के नाम पर तो कोई एफ.आई.आर. है ही नही, इन्हें शायद आज ही उठाया गया हो।" मेघना धीमे स्वर में बोली।
"मुझे इससे कोई मतलब नही, आई वांट एवरी क्लियर डिटेल राइट नाउ! मैं ये नही जानता तुम लोग क्या करोगे, कौन सी जादू की छड़ी घुमाओगे पर मुझे अभी सारा डिटेल चाहिए।"
"ठीक है सर!" कहते हुए सभी सैल्यूट कर पीछे मुड़ गए। अरुण अभी भी बहुत परेशान था, उसने जिन बच्चों को बचाया था उन्हें अभी भी अपने ही पास रखा हुआ था, और उनके माता-पिता को सूचना दे दिया गया था। मगर अब तक कोई उन्हें लेने नही आया था। वह न जाने किस ख्याल में डूबा हुआ था, उनकी लाल आँखे बता रही थी कि वह रात भर पलकें नही झपकाया हुआ था।
"सुबूत मिलते ही नष्ट भी हो जा रहे हैं! आखिर कौन है इस खेल के पीछे जो पर्दे के पीछे से सब चला रहा है।" अरुण चेयर पर बैठा हुआ अपने पैरों को सामने की टेबल पर फैला रखा था, वह अभी भी किसी निष्कर्ष तक नही पहुँच पा रहा था।
"आपका ख्याल सही था सर!" कमरें में प्रवेश करते हुए आदित्य ने कहा, उसके हाथों में कई फाइल्स थीं। "जितने भी बच्चे गायब हुए वे किसी न किसी तरह से अपंग थे, किसी के पैर नही थे तो किसी के हाथ… बाकियों से आप मिल ही चुके हैं।" कहते हुए उसने फाइल्स को टेबल पर पटका।
"व्हाट? ऐसे बच्चों को किडनैप कर किसी को क्या मिलेगा?" अरुण ने कुर्सी पर सीधे बैठते हुए कहा।
"मुझे एक बात समझ नही आई सर! इतना सब रिपोर्ट लिखवाने वालों ने इस बारे में क्लियर क्यों नही बताया, न ही मीडिया ने इसके बारे में कोई क्लेरिफिकेशन दिया।"
"शायद उन्हें लगा हो कि क्लियर डिटेल्स देने पर निकम्मी पुलिस और आलस न दिखाने लगे।" अरुण ने उसे घूरते हुए कहा।
"पर सर!..."
"पर क्या आदित्य? यही कहोगे कि तुमने कोशिश की, पूरी जान लगा दी और फिर भी तुम्हें कुछ हासिल नही हुआ!"
"नही सर!"
"तो?"
"सर जब हम ट्रक की छानबीन कर रहे थे तो हमें कुछ संदिग्ध लगा, जानते हैं वो ब्लास्ट आपको मारने के लिए नही किया गया था।"
"तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे तुमने ही करवाया था। ये बताओ वहां क्या सुराग मिला?"
"सुराग नहीं सर! बस मुझे ऐसा लगा। मान लीजिए आप ट्रक तक पहुँचते ही नहीं फिर भी ट्रक ब्लास्ट कर जाता तो?"
"कोई भला आत्महत्या क्यों करना चाहेगा?"
"इसके दूसरे पहलू को भी देखिए सर!"
"मतलब.. मतलब इन बच्चों को मारना चाहता था। ओ माय गॉड! ऐसा तो कोई शैतान ही कर सकता है।" अरुण के तिरपन फिर गए, वह इसकी आशंका मात्र से ही सिहर गया।
"पर इसका अभी कोई प्रूफ भी नही है सर, मगर कोई दिव्यांग बच्चों का अपरहण भला क्यों करेगा?"
"तुमसे जितना कहा जाए उतना ही किया करो मिस्टर आदित्य! दिमाग के घोड़े अधिक दौड़ाने की कोई जरूरत नही है। और रही बात इन कुत्तो की तो कारण चाहें जो भी हो, मगर जिन्होंने भी ऐसा दुष्कृत्य किया है, अब उनके दिन पूरे हो चुके हैं।" अरुण ने उठते हुए टेबल पर से अपनी पिस्तौल उठाकर होलेस्टर में ठूंसते हुए कहा, उसके चेहरे पर वहीं खूँखारता अब भी दिखाई दे रही थी।
"बट सर! ऐसा भी तो पॉसिबल है कि ट्रक अधिक हीट होने की वजह से अपने आप ब्लास्ट हो गया हो!" आदित्य ने उसके गुस्से पर ध्यान न कुछ सोचते हुए कहा, मगर अरुण का ध्यान उसकी बातों पर न था। उसकी आँखों में खूँखारता मंडराने लगी थी, वह उठकर तेजी बाहर को निकला।
'क्या ज़िन्दगी है यार! कैसे ऑफिसर के अंडर काम करना पड़ रहा है!' आदित्य ने झल्लाते हुए कहा। आदित्य भी अरुण के पीछे जाने के लिए फुर्ती से उठा। अरुण के इस तिरस्कार से उसकी आँखे छलछला उठी, सीने में क्रोध का ज्वार-भाटा लिए उसने गेट की ओर ताका।
क्रमशः….
"लिखने में काफी मेहनत करनी पड़ती है, काफी समय भी लगता है इसलिए आप सभी से निवेदन है कि थोड़ा समय निकालकर प्रत्येक पार्ट पर आपको जैसा लगा वैसी समीक्षा/रिव्यू अवश्य कमेंट करें! और कृपया नाइस और बढ़िया से आगे बढ़कर चार शब्द बोलें, हमारी मेहनत का परिणाम आपकी समीक्षाएं ही हैं।"
आपकी समीक्षाओं के इंतजार में..
मैं: समीक्षाओं का भूखा एक अदना सा लेखक!
Sandhya Prakash
15-Dec-2021 06:59 PM
Behtreen kahani...
Reply
Swati chourasia
21-Oct-2021 07:57 PM
Very beautiful 👌
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Seema Priyadarshini sahay
20-Oct-2021 10:38 AM
बहुत ही रोचक और बेहद शानदार
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